Chero Dynasty of Palamu
Chero Dynasty – अकबर काल (1556 -1605 ई)
भागवत राय ने मुग़लों की अधीनता को अस्वीकार्य कर लीया था। अकबर ने पलामू को अपने अधिकार क्षेत्र में लेन के लिए राजा मान सिंह को पलामू जाने के निर्देश दिए।
वर्ष 1589 ई. में राजा मान सिंह को बिहार के मुगल सूबेदार बनाया गया। मान सिंह मुग़ल सेना के साथ पलामू की ओर बढ़ा और पलामू में क़त्लेआम मचाया। इस कारण पलामू के राजा भागवत राय ने हार मन लिया और मुग़ल अधीनता स्वीकार्य कर लिया।
भागवत राय को पलामू का राजा बना रहने दिया गया और वहाँ एक मुगल फौज रख दी गई। वर्ष 1605 ई. में मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु हो जाने से मुग़ल फ़ौज कमजोर पड़ गयी जिसका चेरों ने फायदा उठाया।
उन्होंने मुगल फौज को मार भगाया और अपनी स्वतंत्र सत्ता – पुनर्स्थापित कर ली।
Chero Dynasty – जहाँगीर काल (1605 -27 ई )
Chero Dynasty: पलामू – शासक:- अनन्त राय
वर्ष 1607 ई में जहांगीर ने पलामू पर पुनः अधिकार करने के लिए अफजल खाँ (अबुल फजल का पुत्र) को पलामू पर आक्रमण करने के लिए भेजा। पर एक असाध्य रोग से उसकी मृत्यु हो गई और यह अभियान अधूरा रह गया।
वर्ष 1612 ई. में अनन्त राय के मरणोपरान्त सहबल राय पलामू का शासक बना। उसने सड़क-ए-आजम (जी.टी.रोड) तक अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ा लिया था और बंगाल से आने जाने वाले काफिलों को लूटा करता था।
जहांगीर ने मुगल अधिकारियों को सहबल राय को पकड़ कर दिल्ली लाने का आदेश दिया। मुगल अधिकारियों ने पलामू पर आक्रमण कर उसे बंदी बनाकर दिल्ली ले गये।
सहबल राय के मजबूत शारीरिक बनावट के कारण जहाँगीर ने उसे एक बाघ से निहत्था लड़ने को कहा। इस द्वंद्व में सहबल राय मारा गया। और पलामू पुनः मुग़लों के अधीन हो गया।
Chero Dynasty – शाहजहां काल (1628 -58 ई )
सहबल राय के मरणोपरांत प्रताप राय चेरोवंशी (Chero Dynasty) शासक बने।
प्रताप राय ने पलामू को अत्यंत समृद्ध बनाया। इन्होने पलामू में किला का निर्माण कराया जो “पुराना किला” के नाम से मशहूर है।
पलामु के समृद्धता के कारण इनके शासन काल में मुगलों के कई आक्रमण भी हुए। वर्ष 1632 ई. में शाहजहां ने बिहार के मुगल सूबेदार अब्दुल्ला खाँ को पलामू का क्षेत्र जागीर के रूप में दिया,
अब्दुल्ला खाँ ने सालाना कर की राशि में बेतहाशा वृद्धि कर दी। इस बढी हई राशि के कारण प्रताप राय ने कर देना ही बंद कर दिया।
वर्ष 1641-42 में शाहजहाँ ने शाइस्ता खाँ को बिहार का नया सूबेदार नियुक्त किया और उसे पलामू पर अधिकार करने को कहा।
शाइस्ता खाँ एक बहुत बड़ी सेना लेकर पलामू पर आक्रमण किया पर प्रताप राय ने संधि कर लिया और पटना में हाजिरी लगाना स्वीकार कर लिया।
एक वर्ष बाद 1643 ई. में पलामू को एक बार फिर मुगल बादशाह शाहजहाँ का दंश झेलना पड़ा जब बादशाह के आदेश पर जबरदस्त खाँ (बिहार का सूबेदार) ने पलामू पर आक्रमण किया।
इसका कारण प्रताप राय के द्वारा पिछले वर्ष का सालाना कर न चुकाना था।
दूसरी तरफ पलामू के शासको में सत्ता-संघर्ष छिड़ा हुआ था। इसका फायदा उठा कर जबरदस्त खाँ आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ा पर प्रताप राय ने पुनः संधि का प्रस्ताव भेजा।
इस संधि के अनुसार प्रताप राय ने 1 लाख रुपये और एक हाथी तथा हाजिरी के लिए साथ में पटना चलना स्वीकार किया।
एक अन्य मुगल सूबेदार इतिकाद खाँ की सिफारिश पर मुगल बादशाह शाहजहाँ ने प्रताप राय को एक-हजारी मनसबदार नियुक्त किया और पलामू को उसी के अधिकार में रहने दिया गया पर वहाँ का सालाना कर तय कर दिया।
कुछ महीनो बाद प्रताप राय की मृत्यु हो गई। उसके बाद भूपाल राय पलामू का शासक बना।
➽ बाद में मेदिनी राय पलामू का शासक बना।
Chero Dynasty – औरंजेब काल (1658 – 1707 ई )
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Jharkhand Regional Dynasties-Political Map |
Chero Dynasty पलामू शासक – मेदिनी राय (1658-74 ई.)
➽ मेदिनी राय पलामू का राजा बनते ही मुगलों की अधीनता अस्वीकार कर पलामू को स्वतंत्र घोषित कर दिया। उसने मुगलों को सालाना कर देना बंद कर दिया साथ ही सीमावर्ती मुग़ल प्रदेशो में लूट-पाट मचाना भी शरू कर दिया।
इस वक्त शाहजहाँ की मृत्यु हो गयी थी और औरंगजेब नया मुग़ल बादशाह बन गया था। उसने बिहार के सूबेदार दाउद खाँ को पलामू पर आक्रमण करने और कर वसूलने का आदेश दिया।
दाउद खाँ दल-बल के साथ दपलाम में प्रविष्ट हुआ और कोठी और कुंडा के किले पर अधिकार कर लिया।
कुंडा के शासक चुन राय ने भय के कारण इस्लाम मज़हब स्वीकार कर लिया। इस धर्म परिवर्तन को चेरो बर्दाश्त नहीं कर पाये और मेदिनी राय ने सुरवर राय (चुन राय का भाई) के हाथों चुन राय की हत्या करवा दी।
कोठी और कुंडा के सफल अभियान के बाद दाउद खाँ तरहसी पहुँचा। तरहसी में पलामू राजा के मंत्री सूरत सिंह ने मुगल सूबेदार दाउद खाँ के समक्ष संधि प्रस्ताव रखा।
दाउद खाँ ने संधि के प्रस्ताव की बादशाह औरंगजेब को भेजी तथा शाही उत्तर के आने तक युद्ध-विराम की घोषणा कर दी।
➽ किन्तु इस युद्ध-विराम के दौरान मेदिनी राय के लोगों ने एक शाही काफिले को लूट लिया। जिस कारण दाउद खाँ पलामू की राजधानी पर आक्रमण के लिए आगे बढ़ा। उसे आगे बढ़ता देख मेदिनी राय युद्ध की तैयारी करने लगा।
इस बीच मुगल बादशाह औरंगजेब का आदेश भी आ गया। इस शाही आदेश में पलामू के राजा को इस्लाम मज़हब स्वीकार करने और प्रस्ताव की रकम चुकाने की शर्त पर उसे राजा के पद पर बने रहने दिया जाने का आदेश दिया गया।
मेदिनी राय ने इसे अस्वीकार कर दिया और अंतिम सांस तक युद्ध करने की घोषणा कर दी। युद्ध घोषणा के बाद औरंगा नदी के तट पर दोनों सेनाओं का युद्ध शुरू हो गया।
➽ मेदिनी राय की हार हो जाती है और वह जंगलों के रस्ते सरगुजा में शरण ले लेता है और पलामू में मुग़लों का अधिकार हो गया।
इसके बाद दाउद खाँ पटना लौटते समय पलामू किला का सिंह द्वार अपने साथ ले गया और दाउदनगर (औरंगाबाद जिला) में अपने गढ़ में लगवाया।
बाद में पलामू के फौजदार मनकली खाँ का तबादला कर दिया गया और पलामू को सीधा बिहार के मुगल सूबेदार की देख-रेख में रखा गया।
मनकली के पलामू से जाते ही मेदिनी राय सरगुजा से पलामू लौट आया और अपने खोये हुए राज्य पर पुनः अधिकार कर लिया।
➽ मेदिनी राय ने शीघ्र ही पलामू को बिगड़े हुए दशा से उबारा और पलामू को पुनः खोया हुआ सम्मान वापस दिलाया। इसलिए मेदिनी राय के शासन काल को ‘चेरो शासन के स्वर्ण युग’ कहा गया है।
मेदिनी राय के पहल से औरंगजेब प्रभावित हुआ और पलामू को उसी के अधीन बने रहने दिया। वर्ष 1674 ई. में मेदिनी राय की मत्य हो गयी ।
Chero Dynasty – उत्तर मुग़ल काल (1707 – 68 ई )
मेदिनी राय की मत्य का बाद साहेब राय और बाद में रणजीत राय पलामू का शासक बना।
- रणजीत राय ने छोटानागपुर खास के टोरी परगना पर अधिकार किया।
- रणजीत राय के ही एक रिश्तेदार जयकृष्ण राय ने रणजीत राय को मार डाला और पलामू पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
- 1740 ई. में बिहार के सूबेदार जैनुद्दीन अहमद खाँ के सैन्य अधिकारी हिदायत अली खाँ का आक्रमण पलामू में अंतिम आक्रमण था, क्यूंकि इसके बाद मुगल प्रभाव के स्थान पर मराठा प्रभाव हावी हो गया।
➽ मराठा पेशवा 1743 ई. में छोटानागपुर खास के नागवंशी राज्य से होकर मिर्जापुर जाने के क्रम में पलामू से होकर गुजरा । इस बात का प्रमाण पलामू के कुछ गाँवों के नाम मराठी भाषा से मिलता है जैसे मरहटिया, पेशका आदि।
1750-65 ई. के दौरान पलामू में राजनीतिक उठा-पठक मचा हुआ था। पलामू राज्य दो भागों में बिभक्त हो गया – दक्षिणी पलामू और उत्तरी पलामू।
- दक्षिणी पलामू चेरो राजवंश के कब्जे में रहा जबकि उत्तरी पलामू में राजपूत व मुस्लिम जमींदारों के कब्जे में आ गया।
Chero Dynasty – अंग्रेज कालीन (1767-1837)
कंपनी का पलामू पर अधिकार करने का प्रमुख कारण था –
1. नागपुर और सरगुजा के रास्ते मराठों के आक्रमण के खिलाफ एक रक्षा पंक्ति बनाना।
2. विद्रोही जमींदार का पलामू में शरण लेने से रोक लगाना।
➽ इधर पलामू में राजनैतिक उठा-पाठक मची हुई थी। पलामू के शासक जयकृष्ण राय ने सयनाथ सिंह की हत्या कर दी।
इसका बदला लेने के लिए सयनाथ सिंह के भतीजे जयनाथ सिंह ने चित्रजीत राय के हाथों पलामू के शासक जयकृष्ण राय को चेतमा (सतबरवा ) की लड़ाई में हराकर मार डाला और पलामू पर अधिकार कर लिया।
बाद में जयनाथ सिंह ने चित्रजीत राय को पलामू का राजा बनाया और खुद उसका दीवान बना ।
पर स्वर्गीय जयकृष्ण राय के पक्षधर उदवंत राय अखौरी को यह रास नहीं आया और वह पटना जाकर अंग्रेजों से जयकृष्ण राय के पौत्र गोपाल राय को पलामू का राजा बनाने का गुहार लगाया।
कम्पनी के अपना एक दूत गुलाम हुसैन खान को पलामू भेजा और जयनाथ सिंह (दीवान ) को पलामू का सत्ता अंग्रेजों को सौपने का आदेश दिया।
जयनाथ सिंह ने विचार-विमर्श करने के लिए 10 दिनों का समय माँगा पर अंग्रेज उसके इस छल को समझ गए थे। फिर भी उसे समय दे दिया गया।
इधर कंपनी ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी थी और कैप्टेन जैकब कैमक को इस अभियान के लिए पलामू रवाना कर दिया।
कैप्टेन जैकब कैमक ने पलामू पहुंच कर किला की घेरा बंदी कर दी और जल्द ही उसने पुराने किले पर अधिकार कर लिया। पर पलामू के लोग पहले ही पानी की कमी के कारण नए किला में चले गए थे।
बहुत जल्द ही कैप्टेन ने नया किला पर भी अधिकार कर लिया और पलामू के राजा और दीवान जंगलों के राश्ते रामगढ भाग गए।➽ गोपाल राय को पलामू का राजा घोषित किया गया।
इस प्रकार, 1771 ई. तक प्रायः समस्त पलामू पर कम्पनी का अधिकार हो गया।
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